अप्रैल 03, 2019
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मेट्रो विस्तार के चौथे फेज मे केंद्र व दिल्ली सरकार आमने सामने वित्तीय हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज
मेट्रो विस्तार के चौथे फेज मे केंद्र व दिल्ली सरकार आमने सामने वित्तीय हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रस्ताव खारिज
दिल्ली मेट्रो के फेज चार में दिल्ली सरकार की वित्तीय हिस्सेदारी बढ़ाने की खबरों को केंद्र सरकार ने सिरे से खारिज किया है। मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि प्रोजेक्ट में देरी होने से मेट्रो फेज-चार की लागत 5000 करोड़ रुपये तक बढ़ गई है। बावजूद इसके, केंद्र सरकार ने तीन कॉरिडोर पर दिल्ली सरकार की हिस्सेदारी में से 1000 करोड़ रुपये घटा दिए हैं।
केंद्रीय आवास व शहरी कार्य मंत्रालय की तरफ से मीडिया में इस बारे में बयान जारी किया गया कि दिल्ली सरकार की तरफ से जनवरी में मेट्रो फेज चार को लेकर भेजे प्रस्ताव के आधार पर तीन कॉरिडोर को मंजूरी दी गई है। इसमें दिल्ली सरकार की हिस्सेदारी 8,872 करोड़ रुपये थी, लेकिन केंद्र ने दिल्ली को राहत देते हुए इसकी लागत 7,844 करोड़ रुपये कर दी है।
केंद्र व राज्य के बीच वित्तीय भागीदारी का फार्मूला केंद्र ने मेट्रो रेल पॉलिसी के आधार पर तय किया है। केंद्र ने दिल्ली सरकार के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि बजट बढ़ाकर मेट्रो में अड़चन डालने की केंद्र कोई कोशिश नहीं कर रहा है। अभी तक इस बारे में दिल्ली सरकार की कोई चिट्ठी मंत्रालय को नहीं मिली है। इसके उलट केंद्र का आरोप है कि दिल्ली सरकार मेट्रो फेज चार के काम को रोकने की कोशिश कर रही है।
दूसरी तरफ दिल्ली सरकार का कहना है कि मेट्रो फेज चार को लेकर वह गंभीर है। केंद्र सरकार अपनी तरफ से इस मामले में अड़ंगा लगा रही है। पहले छह कॉरिडोर में से सिर्फ तीन को केंद्र से मंजूर किया।
वहीं, दिल्ली सरकार के इक्विटी शेयर को 8.08 फीसदी से बढ़ाकर 16.36 फीसदी कर दिया। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण की पूरी रकम भी दिल्ली सरकार पर डाल दी। यही नहीं, दिल्ली सरकार का कहना है कि परियोजना लागत में भी दिल्ली सरकार की हिस्सेदारी बढ़ाई गई है।
पहले तीन कॉरिडोर के लिए दिल्ली सरकार का योगदान 20.77 फीसदी से बढ़ाकर 31.44 फीसदी कर दिया है। आरोप है कि इस तरह का एकतरफा फैसला संघीय ढांचे के खिलाफ है। सरकार ने डीएमआरसी को 200 करोड़ देने के साथ अपनी चिंताएं भी बता दी हैं।
दिल्ली सरकार का कहना है कि दिल्ली कैबिनेट की तरफ से मंजूर प्रस्ताव में बदलाव करने से पहले केंद्र को बात करनी चाहिए थी। केंद्र का इस तरह एकतरफा फैसला नहीं लेना चाहिए था।
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