पर्यावरण दिवस पर
हाँ मैने माना
मैं तुम्हारे आँगन की
तुलसी नहीं
फिर भी
मैंने दी है
तुम सबको छाँव।
जब - जब
फलदार हुआ मैं
सहता रहा अक्सर
तुम्हारे सबके पत्थर
और
देता रहा सबको
मीठे-मीठे फल।
मगर -
मेरी शहनशीलता ही तो है
जो मुझपर
चलाकर आरा
मुझे काट दिया जाता है।
और
चलाकर कुल्हाड़ी
टुकड़ों में बाँट दिया जाता है।
मैं फिर भी ठण्डे मौसम में
खुद जलकर
देता रहता हूँ सबको ताप।
हाँ ये सच है
सज्जनता और शहनशीलता को
मिलता है
सदा यही उपहार
बनाकर उसका ईधन
झोक दिया जाता है
किसी न किसी
स्वार्थ की भट्टी में।।
विजय "तन्हा"
सम्पादक - 'प्रेरणा' पत्रिका
पुवायाँ, शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)
9450412708 ,9044520208
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