उतार-चढ़ाव भरा रहा सज्जन का सियासी सफर, शुरुआत में रेहड़ी पर चाय बेचते थे - Sambandhsetu News

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दिसंबर 18, 2018

उतार-चढ़ाव भरा रहा सज्जन का सियासी सफर, शुरुआत में रेहड़ी पर चाय बेचते थे


कांग्रेस नेता सज्जन कुमार का सियासी सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। शुरुआत में रेहड़ी पर चाय बेची और इसके बाद 70 के दशक से कांग्रेस में सक्रिय हुए। इस दौरान उनका कांग्रेस नेता संजय गांधी से संपर्क हुआ। सबसे पहले बाहरी दिल्ली के मादीपुर इलाके से  सज्जन कुमार ने नगर निगम का चुनाव लड़ा और 1977 में पार्षद बने। कांग्रेस ने उन्हें 1980 में बाहरी दिल्ली से उम्मीदवार बनाया और सिर्फ 35 साल की उम्र में सांसद बने। 
2004 में भारतीय राजनीति में उनके नाम दो रिकॉर्ड दर्ज हुए। पहला, तो देशभर में लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा मत पाने का रिकार्ड हासिल किया। वहीं, दिल्ली से सबसे अधिक मतों से चुनाव जीतने का रिकार्ड भी उनके ही नाम रहा। उन्हें आठ लाख से अधिक मत मिले थे। इन सबके बीच 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद पनपे दंगों की आंच उनके राजनीतिक करियर पर भी आई। कांग्रेस ने सज्जन कुमार को टिकट नहीं दिया। इतना ही नहीं, सिख समुदाय की नाराजगी से बचने के लिये कांग्रेस ने 1989 में भी उन्हें टिकट नहीं दिया।    
1991 में कांग्रेस ने बदले सियासी माहौल में एक बार फिर बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से उन्हें टिकट दिया और वह दुबारा संसद पहुंचे। इस बीच सिख दंगों को लेकर चर्चा काफी गर्म रही। राजनीतिक पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। 1993 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए और सज्जन के कई साथी विधानसभा में चुनकर आ गए, लेकिन बाद में 1996 के चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ नेता कृष्णलाल शर्मा के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इस बीच अलग-अलग अदालतों में सज्जन कुमार के खिलाफ कई मामले दर्ज हो चुके थे। सीबीआई ने भी सज्जन कुमार के खिलाफ आरोपपत्र दायर कर दिया था। नाजुक हालत देखते हुए 1998 और 1999 में एक बार फिर कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में उनका टिकट काट दिया। बावजूद इसके बाहरी दिल्ली में सज्जन का प्रभाव कम नहीं हुआ और 2004 में वे फिर से लोकसभा का टिकट पा गए। वर्ष 2009 के चुनावों में दंगो के मामले को लेकर सज्जन का टिकट कट गया लेकिन वे अपने भाई रमेश कुमार को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे और उनको सांसद बनवा दिया। 
31 अक्तूबर 1984: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या।      
1-2 नवंबर  1984: इसके बाद भड़के दंगों में राजनगर इलाके में भीड़ ने पांच सिखों की हत्या कर दी।       
मई 2000: दंगों की जांच के लिये जीटी नानावती कमीशन का गठन।      
दिसंबर 2002: सेशन कोर्ट ने सज्जन कुमार को एक मामले में बरी कर दिया था।
24 अक्तूबर 2005: जीटी नानावती कमीशन की सिफारिश पर सीबीआई ने दूसरा मामला दर्ज किया।      
1 फरवरी 2010: ट्रायल कोर्ट ने सज्जन कुमार को समन किया।     
24 मई: ट्रायल कोर्ट ने चार्ज फ्रेम किया।      
अप्रैल 2013: अदालत ने सज्जन कुमार को इस मामले में बरी किया।      
19 जुलाई 2013: सीबीआई ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की।      
22 जुलाई 2013: हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को नोटिस जारी किया।      
29 अक्तूबर 2018: हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया।      
17 दिसंबर 2018: हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी करार देते हुये आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 
1970 : दिल्ली की राजनीति में सक्रिय
1977 : दिल्ली नगर निगम का चुनाव लड़ा और पार्षद चुने गए
1980 : लोकसभा चुनावों में चौधरी ब्रह्म प्रकाश को हरा कर पहली बार सांसद बने
1984: सिख दंगों में शामिल होने का आरोप लगा और उसी साल हुए आम चुनावों में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया
1991: सांसद चुने गए लेकिन इसके बाद उन्हें संसद में घुसने के लिए 13 साल इंतजार करना पड़ा।
2004: बाहरी दिल्ली सीट से सांसद चुने गए।
2005 : जस्टिस जीटी नानावती आयोग की सिफारिशों पर सज्जन कुमार और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया
2005 : केस की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपी गई और उसने कोर्ट को बताया कि दंगों में सज्जन और पुलिस के बीच मिलीभगत के सबूत मिले थे। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने दंगों की जांच की थी ।
जनवरी 2010 : सीबीआई ने अभियुक्तों के खिलाफ दो चार्जशीट दायर की
30 अप्रैल 2013 : दिल्ली की एक निचली अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान दिल्ली छावनी में पांच सिखों की हत्या के मामले में सज्जन कुमार को सभी आरोपों से बरी किया। इसके बाद सीबीआई ने हाईकोर्ट में अपील की ।
2014 : भाजपा सरकार ने एसआईटी बनाई ।
27 अक्तूबर 2018: दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया ।
17 दिसंबर 2018: दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई 

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